मदर्स डे यानि मां का दिन

आसिफ मर्चेंट


आज की माँ के बारे में कहा जाता है कि वह एक तरह से चौबीस घंटे सात दिन काम करती है। दफ्तर और घर दोनों को संभालती है ।और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी भी निभाती है। और यह बात सच भी है । एक तरफ आज की तकनीक ने उनके जिन्दगी को आसान बनाया है वही दूसरी तरफ इसी तकनीक ने दफ्तर को घर के अंदर पहुंचा दिया है । आज की दौर की माँ और पिछले दौर की माँ को जैसे माँ, चाची, नानी, दादी, ताई , वगैरा के बारे में सोचता हूं तो महसूस होता है कि उनको काम करने का शायद कोई ईनाम कभी मिला हो जिसकी वह हकदार थी ।

उस दौर की माँ का मतलब होता था चौबीस घंटे काम करने वाली माँ सुबह सबसे पहले उठकर काम करना रात में सबके सो जाने के बाद सोने वाली,
सुबह उठकर स्कूल जाने से पहले बच्चों के लिए चाय नाश्ता बनाना उनके लिए दोपहर का खाना देना और अगर सयुंक्त परिवार साथ में है । तो बीस तीस लोगों के लिए चूल्हे पर खाना ही नहीं पकाना सबको गरम-गरम भी खिलाना होता था । इसके साथ ही सुबह-सुबह दही मक्खन निकालना, दूध उबालना, पुराने कपड़ों को ठीक करना, कपड़ों की सिलाई करना, दोपहर में पापड़ , चिप्स तरह-तरह के अचार बनाना, सर्दियों में स्वेटर बुनना, रजाई में रुई भरवाकर उसमें डोरे डालना, घर पर आए गए की खातिरदारी करना, दुनियादारी निभाना उस दौर की माँ जो काम करती थी आज वह सारे काम बाजार के हवाले है।

आज की माँ के पास इतना वक्त ही नहीं है कि वह त्योहार पर पकवान बना सकें मसाले पिस्वा सकें, घर में गेहूं साफ करके आटा पिसवा सकें, इसके अलावा आज की माँ को तमाम किस्म की तकनीकी सहूलियते है पुरानी दौर की माँ को जो चूल्हे पर रात दिन लगी रहती थी उसकी जगह आज गैस चूल्हे हैं, कूकर है, मिक्सी है, माइक्रोवेव है, खाना खराब ना हो इसके लिए फ्रीज है, कपड़े धोने की मशीन है, और ना जाने क्या-क्या है आज की माँ और पिछले दौर की माँ की मेहनत में एक बड़ा फर्क यह भी है कि आज की दौर की माँ को मेहनत की कीमत मिलती है।

इसलिए उनकी मेहनत सबको दिखाई देती है पिछले दौर की माँ चाहे जितनी मेहनत करती थी वह सब घर परिवार की देखभाल के खाते में चली जाती थी इसलिए उसकी मेहनत की कोई कीमत नहीं थी मैं देखता हूँ पहले की औरतें पिच्चासी – नब्बे के पार हो कर इस दुनिया से विदा होती थी पूरी जिंदगी में शायद ही कभी ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या किसी अन्य मर्ज का कोई टेस्ट हुआ हो मैं तो कहता हूं कि आज की माँ को पुराने जमाने की माँ से कुछ मेहनत करना सीखना चाहिए और खुद को उनकी तरह तंदुरुस्त भी रखना चाहिए ।
धूप में बाप और चूल्हे पर माँ जला करती है,
तब कहीं जाकर औलादे पला करती हैं।

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