हरीयाली व सुख समृद्धि के प्रतीक हरेला क्यों हैं खास

मतलुब अहमद

ऋतु जोशी ग्राम प्रधान फतेहपुर गुजरौडा

नैनीताल हल्द्वानी। हरियाली व सुख समृद्धि का प्रतीक उत्तराखंड के पौराणिक लोक पर्व हरेला उत्तराखंड के लोगों के लिए बहुत खास है । जिसके पीछे फसल लहराने की कामना है। बीजों का संरक्षण है। और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद है ।उत्तराखंड के लोग देश-विदेश में बसे  अपने परिवार के सदस्यों को चिट्ठियों के जरिए हरेला के तिनके को आशीष के तौर पर भेजते हैं। इस दिन पूरे पहाड़ में पौधे भी लगाए जाते

हरेले का मतलब हरियाली मूल तौर पर यह त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। इस दिन कान के पीछे हरेले के तिनके रखे जाते हैं। उत्तराखंड कृषि पर निर्भर है ।और यह लोक पर्व इसी पर आधारित है। बीजों के संरक्षण खुशहाल पर्यावरण को भक्ति से जोड़ते हुए इस पर्व को पूर्वजों ने आगे पीढियो तक पहुंचा है। हरेला पर्व के समय में शिव और पार्वती की पूजा का विधान है।

फतेहपुर गुजरौड़ा की ग्राम प्रधान ऋतु जोशी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज के दिन सब लोग संकल्प लें। और एक पेड़ अपने घर और आसपास के क्षेत्र में लगाने की पूरी-पूरी कोशिश करें। आज जंगल कटते जा रहे हैं। और पर्यावरण का संतुलन भी खराब हो रहा है इसलिए लोग एक पेड़ जरूर लगाए।

ग्राम प्रधान  ऋतु जोशी ने हरेला त्यौहार के बारे में और बताते हुए  कहा कि हरेला पर्व सिर्फ धार्मिक या कृषि से जुड़ा नहीं है ।बल्कि इसका गहरा सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी  है। यह पर्व सामाजिक समरसता व एकता का प्रतीक है। गांव के लोग एकत्रित होकर इस पर्व को मानाते हैं। इसमें भाईचारा और  सामूहिकता कि भावना बढ़ती है ।

उत्तराखंड में सावन मास की शुरुआत हरेला पर्व से होती है । यह तारीख 16 व 17 जुलाई के दिन आगे पीछे रहती है। इस दिन सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। हरेला पर्व से 9 दिन पहले हर घर में मिट्टी या बास की बनी टोकरी में हरेला बोया जाता है । टोकरी में एक परत मिट्टी की दूसरी परत पर कोई भी सात अनाज जैसे गेहूं ,सरसों ,जो ,मक्का, मसूर, मास की बिछाई  जाती है ।और इसको छाये में रखा जाता है 9 दिन में इस टोकरी में अनाज उग जाते हैं। इसी को हरेला कहते है। माना जाता है कि जितनी ज्यादा बालियां ऐ उतनी अच्छी फसल।

हरेला उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर है । जो न केवल धार्मिक और कृषि महत्व रखता है ।बल्कि सामाजिक एवं पर्यावरण और दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ संतुलन और समाज समाज से बनाए रखने की शिक्षा देता है। और हरियाली को संरक्षित करने का संदेश भी देता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Call Now Button