♦मतलुब अहमद
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की उन सिफारिशों पर रोक लगा दी, जिनके तहत मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग रोकने और गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। इस फैसले के बाद मदरसों को पहले की तरह सरकारी फंडिंग मिलती रहेगी, और उनके छात्रों का सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील की दलीलें सुनीं, जिसमें NCPCR और कुछ राज्यों की कार्रवाइयों पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
मुस्लिम संगठन की याचिका और अदालत का रुख।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के उन निर्देशों को चुनौती दी थी, जिनमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून और 25 जून को जारी एनसीपीसीआर की सिफारिशों पर रोक लगाते हुए कहा कि राज्यों के आदेश भी स्थगित रहेंगे।
इसके साथ ही अदालत ने मुस्लिम संगठन को निर्देश दिया कि वे अन्य राज्यों को भी इस याचिका में पक्षकार बनाए, ताकि मामला व्यापक रूप से सुना जा सके।
NCPCR की सिफारिशों का तर्क
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने हाल ही में कहा था कि उन्होंने मदरसों को बंद करने की सिफारिश नहीं की, बल्कि सरकारी फंडिंग पर रोक लगाने की बात इसलिए कही थी क्योंकि ये संस्थान गरीब मुस्लिम बच्चों को उचित शिक्षा से वंचित कर रहे हैं। उनका कहना था कि इन बच्चों पर धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का दबाव डाला जाता है, जबकि उन्हें समान अवसर मिलने चाहिए।
जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना अरशद मदनी साहब ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री डी ,वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस्लामी मदरसो के खिलाफ जारी सभी नोटिस पर रोक लगाई जो की जमीयत उलम,ए, हिंद की एक और बड़ी उपलब्धि है।
हालांकि, एनसीपीसीआर की इस सिफारिश के बाद कई राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई नेताओं ने इसे अल्पसंख्यक संस्थानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया था।