दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार और गांधीवादी भावना को बढ़ावा देने पर बल

मतलुब अहमद

मद्रास,केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के 83वें दीक्षांत समारोह में अपने प्रेरक भाषण से हिंदी भाषा के महत्व और इसकी प्रासंगिकता पर जोर दिया। महात्मा गांधी दीक्षांत हॉल में आयोजित इस भव्य समारोह में लगभग 8000 छात्र और दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों से गणमान्य अतिथि शामिल हुए।

सोनोवाल ने अपने संबोधन में हिंदी भाषा की व्यापक स्वीकार्यता और उसकी एकीकृत करने की शक्ति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “हिंदी सभी भारतीयों के दिलों में बसती है और इस भाषा के माध्यम से हम पूरे देश को गांधीवादी भावना से जोड़ सकते हैं।”

उन्होंने यह भी बताया कि हिंदी ने हमेशा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को अपनाकर उनकी समृद्धि में योगदान दिया है। “हिंदी ने कभी भी किसी क्षेत्रीय भाषा के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया नहीं रखा, बल्कि उन्हें स्वीकार किया है। यह इसकी प्रासंगिकता और लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है।

 

दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार-प्रसार

इस अवसर पर दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पांच वरिष्ठ हिंदी प्रचारकों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। साथ ही, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम की प्रत्येक भाषा से चार-चार साहित्यकारों को भी सम्मानित किया गया, जो गांधी जी के एकीकरणवादी दृष्टिकोण का प्रतीक है।

छात्रों का योगदान और वैश्विक दृष्टिकोण

श्री सोनोवाल ने युवाओं से हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने की दिशा में योगदान करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हिंदी में वैश्विक भाषा बनने की पूरी क्षमता है, और इसके लिए युवाओं की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। उन्होंने इस संदर्भ में गांधी जी के विचारों को याद करते हुए कहा कि हिंदी देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है।

सम्मानित किए गए छात्र और साहित्यकार

कार्यक्रम के दौरान प्रवीण और विशारद परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए। इसके अलावा, एमए, एम.फिल, पीएचडी, बी.एड और पीजी डिप्लोमा प्राप्त करने वाले छात्रों को भी निष्ठा की शपथ दिलाई गई।

इस समारोह में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अध्यक्ष श्री वी. मुरलीधरन और शिक्षा परिषद, डीबीएचपी सभा के चेयरमैन श्री पी. ओबैया ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

गांधीवादी विचारधारा की झलक

इस आयोजन ने गांधी जी के एकीकरणवादी दृष्टिकोण को जीवंत किया, जो भारतीय भाषाओं के सामंजस्य और उनके समान महत्व को प्रोत्साहित करता है। समारोह ने दक्षिण भारत में हिंदी के महत्व और उसके प्रचार-प्रसार की दिशा में एक नई ऊर्जा का संचार किया।

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