पर्यावरण संकट और पानी बचाने पर इस्लाम का दृष्टिकोण

मतलुब अहमद ।    आए दिन जानलेवा गर्मी का हम रोज सामना कर रहे हैं। जंगलों पहाड़ों पर लगती आग और तपतपाती गर्मी और पानी की कमी ने इंसानों और जानवरों का जीना दुश्वार कर दिया है । और यह इंसान अपने थोड़े लालच और स्वार्थ के लिए अपने क्षणिक लाभों और हितों की खातिर पूरी मानव जाति और प्राणी जगत को तबाह और बर्बाद कर देने को तत्पर है ।

पर्यावरण तबाही की कगार पर है और संसार में पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता जा रहा है । पानी की किल्लत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देखा गया है कि कहीं तो बाढ़ की स्थिति हो जाती है । तो कहीं पर अत्यधिक सूखा पड़ जाता है ।

परंतु हमारा देश हो या दुनिया के अमीर देश अपनी अपनी जिम्मेदारियो से भागते हुए अंधाधुंध विकास के नाम पर जंगलों नदी नालो का दोहन कर रहे हैं। शहर हो या गांव कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो रहे है ।

इंसान एक दूसरे से आगे बढ़ने की होढ मे अधिक से अधिक पैसा अर्जित और अनावश्यक खर्चों और विलासिता जीवन जीने के लिए अधिक से अधिक बिल्डिगो का निर्माण कर रहा है। जंगलों को काट रहा है। पहाड़ों को छांटकर समतल करने में लगा हुआ है । उत्तराखंड में आने वाली आपदाएं इसका उदाहरण है। दुनिया की चमक दमक में डूबे रहने के शौक में दुनिया को तबाही के दहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है।

लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस पर काबू कैसे पाया जाए । इस्लाम चुकि जीवन के हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन करता है। बल्कि इस संबंध में पवित्र कुरान कहता है। कि ईश्वर ने इस कायनात( दुनिया) की रचना में किसी प्रकार की विसंगति, विषमता और असंतुलन नहीं रखा बल्कि खुद मनुष्य की करतूत ही संसार में असंतुलन और विसंगति उत्पन्न करने का कारण है। वह प्रकृति को बेदर्दी के साथ इस्तेमाल करता है।

संसार की जो कानून व्यवस्था है । उसके विपरीत इस्लाम के शिक्षा यह है कि एक दूसरे से आगे बढ़ने की होढ केवल नेकियों, भलाई लोगों की मदद और अच्छे कामों में होनी चाहिए ना की विलासिता पूर्वक जिंदगी बिताने में होनी चाहिए। पवित्र कुरान में है । तकासुर 【अर्थात एक दूसरे से अधिक माल हासिल करने की धुन】 ने तुम्हें हलाक कर दिया है। इस्लाम सादा जीवन जीने का उपदेश देता है। इसके अतिरिक्त इस्लाम की शिक्षा यह है कि किसी के पास अधिक संसाधन है तो उन्हें जरूरतमंदों पर खर्च करना चाहिए। इस्लाम में पर्यावरण के प्रति सजगता और संसाधनों की सुरक्षा के महत्व पर बहुत बल दिया गया है

मोहम्मद साहब ने पेड़ों को अकारण काटने से मना ही नहीं किया बल्कि पेड़ पौधे अधिक से अधिक उगाने की भी शिक्षा दी । मोहम्मद साहब ने कहा कि जो व्यक्ति किसी बंजर जमीन को हरी भरी बनाएगा उसे उसका बदला (पुण्य) मिलेगा। एक और हदीस में मोहम्मद साहब ने कहा कि यदि तुम देखो की कयामत [प्रलय ]आने वाली है। और तुम्हारे पास केवल इतना समय है कि तुम एक पौधा लगा सकते हो तो उसको लगा लो। इससे यह शिक्षा मिलती है कि धरती को बचाए रखना उसे हरा भरा करने के लिए इंसान अंतिम समय तक जो प्रयास कर सकता है उसे करना चाहिए । इस संबंध में इस्लाम की सबसे सशक्त धारणा यह है कि सृष्टि का मालिक एक ईश्वर है । और यहां जितने भी संसाधन है सब उसकी संपत्ति है। मनुष्य उसका निगरा या संरक्षक बनाया गया है। मनुष्य को केवल यह अधिकार दिया गया है कि वह यथासंभव संसाधनों का इस्तेमाल करें लेकिन बर्बाद ना करें । और किसी को न करने दे।

इसी के साथ-साथ इस्लाम सावधान करता है। कि इंसानों को प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद करने की प्रति जवाब दे ही देनी होगी । यही जिम्मेदारी का एहसास मनुष्य को मजबूर करता है। कि संसार के संसाधनों के इस्तेमाल में सतर्कता और संतुलन बनाए रखें ।

मोहम्मद साहब के बाद इस्लामी शासन के पहले खलीफा अबू बकर ने इस्लामी फौजियों के  सिपाहसलारो को आदेश देते हुए कहा था की फलदार पेड़ों को न काटना । किसी जमीन को वीरान ना करना शहद की मक्खियों को न जालना और नहीं उन्हें तीतर बीतर करना।

पानी को अत्यंत सावधानी से इस्तेमाल करने और उसे गंदा न करने की शिक्षा भी मोहम्मद साहब ने दी है। मोहम्मद साहब ने पानी अधिक बर्बाद करने से मना किया है। उन्होंने कहा कि वजू (यानी नमाज से पहले हाथ मुँह धोना) मैं भी पानी को बर्बाद करने से मना किया है। मोहम्मद साहब ने कहा कि हां चाहे तुम बहती नदी के किनारे ही वजू क्यों ना कर रहे हो।

एक और हदीस में मोहम्मद साहब ने कहा कि कयामत (प्रलय ) के दिन ईश्वर उसकी वह नजर उठा कर भी नहीं दिखेगा जिसको जरूर से अधिक पानी मिले और वह उसे पानी से मुसाफिरो को फायदा उठाने से वंचित रखें। मोहम्मद साहब ने पानी के व्यापार से भी मना किया है । इन शिक्षाओं के अतिरिक्त स्वयं अपने आप को देश ,प्रदेश शहर अपने आसपास और अपने घर को साफ सुथरा रखने की शिक्षा हमें पवित्र कुरान और हदीस में हमको मिलती है ।

और यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर रखने के लिए और पानी को दूषित होने से बचने के लिए हम इस्लाम की की शिक्षाओं का अनुसरण करें ताकि हमारा देश यह धरती स्वच्छ और प्रदूषण रहित बन सके यदि हम अपना और अपने बच्चों का भविष्य बचाना चाहते हैं तो क्लाइमेट चेंज जैसे गंभीर मुद्दों को घर-घर पहुंचना होगा ताकि मानव स्वच्छ वातावरण में सांस ले सके।





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