मतलुब अहमद:
नई दिल्ली ,संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी गठबंधन INDIA के सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के बीच कथित संबंधों पर जमकर विरोध प्रदर्शन किया। राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष ने “मोदी-अडानी एक है” के नारे लगाए और केंद्र सरकार पर अडानी समूह को अनुचित लाभ पहुंचाने का गंभीर आरोप लगाया।
क्या है आरोप?
विदेशी शेल कंपनियों से निवेश,अडानी समूह पर आरोप है कि उन्होंने विदेशी शेल कंपनियों के जरिए काले धन को सफेद किया और इसे भारत में निवेश किया।
♦ कर चोरी,विपक्ष का कहना है कि अडानी समूह ने टैक्स चोरी कर नियमों का उल्लंघन किया है।
♦नीति में पक्षपात,विपक्षी दलों का दावा है कि सरकार ने नीतियों में बदलाव कर अडानी समूह को बंदरगाह, हवाईअड्डे और कोयला खदानों जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुचित लाभ पहुंचाया।
विपक्ष की मांगें
जांच समिति का गठन: विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के तहत एक स्वतंत्र जांच समिति की मांग कर रहा है।♦पारदर्शिता: सरकार से अडानी समूह और विदेशी शेल कंपनियों के बीच कथित संबंधों पर स्पष्ट बयान देने की मांग की गई है।
♦जवाबदेही: प्रधानमंत्री मोदी से इस मुद्दे पर संसद में खुलकर जवाब देने की मांग की गई है।
राहुल गांधी का हमला
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार देश के संसाधन कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को सौंप रही है। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर जवाब देने से बच रहे हैं। देश के गरीबों और मध्यम वर्ग का पैसा सिर्फ एक व्यक्ति की झोली में जा रहा है।”
भाजपा का पलटवार
भाजपा ने विपक्ष के प्रदर्शन को सिरे से खारिज करते हुए इसे “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, “विपक्ष के पास ठोस मुद्दे नहीं हैं। यह सब संसद की कार्यवाही में बाधा डालने और ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है।”
संसद का हाल
विपक्ष के हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा और राज्यसभा में बहस के दौरान तीखी नोकझोंक देखने को मिली। विपक्ष ने चेतावनी दी कि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो विरोध तेज होगा।
इस विवाद का असर
संभावित जांच: बढ़ते दबाव के चलते सरकार को स्वतंत्र जांच समिति के गठन पर विचार करना पड़ सकता है।♦चुनावी रणनीति: यह मुद्दा 2024 के आम चुनावों में विपक्ष के लिए बड़ा हथियार बन सकता है।
जनता की प्रतिक्रिया और आरोपों पर उनका रुख सरकार और विपक्ष की स्थिति को तय कर सकता है।
“मोदी-अडानी एक है” का नारा सिर्फ संसद तक सीमित नहीं रहेगा। यह विवाद सरकार की साख और चुनावी समीकरणों पर दूरगामी असर डाल सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि सरकार इस मुद्दे पर कैसे प्रतिक्रिया देती है और विपक्ष इसे जनता के बीच कैसे भुनाता है।