रिपोर्ट, मतलुब अहमद
दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) एक मजबूत शक्ति बनकर उभरी थी, जिसने 2015 और 2020 में भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार की हार ने न केवल पार्टी को झटका दिया, बल्कि इसकी रणनीति पर भी सवाल उठाए हैं। इस हार के पीछे कई कारण हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति, कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ना, भाजपा का जातीय और धार्मिक समीकरणों को साधना, और आप की अपनी कमजोरियां शामिल हैं। इस लेख में विस्तार से जानेंगे कि आम आदमी पार्टी को किन कारणों से हार का सामना करना पड़ा, इस हार का राजनीतिक असर क्या होगा और भविष्य में पार्टी को क्या रणनीति अपनानी चाहिए
दिल्ली में क्यों ढ़हा आम आदमी पार्टी का किला,
27 सालों के बाद बीजेपी दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी पर घोटाले के गंभीर आरोप लगे, आखिर क्या वजह रही कि आम आदमी पार्टी की राज नीतिक स्थिति क्यों इतनी कमजोर रही है। दिल्ली में आप सरकार ने करीब एक दशक तक शासन किया । लंबे समय तक सत्ता मे बने रहने के कारण जनता के बीच असंतोष और बदलाव की इच्छा बढ़ी,और विकल्प के तौर पर भाजपा को चुना, पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ,पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, सांसद संजय सिंह इन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपो उनकी गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया, केजरीवाल ने हमेशा से वीआईपी कल्चर पर सवाल उठाए थे ,लेकिन शीशमहल के मुद्दे पर खुद ही वीआईपी कल्चर के मुद्दे पर बुरी तरह घिर गए, दिल्ली में सड़क, परिवहन, स्वच्छता, प्रदूषण ,जल भराव और कूड़े की ढेर जैसी समस्याओं का समाधान न होने से भी जनता के बीच केजरीवाल के प्रति नाराजगी बड़ी, कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने के फैसले ने आप की रण नीतिक कमजोरी को उजागर भी किया।
कांग्रेस के मत प्रतिशत में वृद्धि और‘आप’ को नुकसान
दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले कुछ चुनावों में बेहद कमजोर रहा था। 2015 में कांग्रेस को 9.7 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2020 में घटकर 4.3 प्रतिशत रह गए थे। लेकिन इस बार कांग्रेस ने मत प्रतिशत में बढ़ोतरी दर्ज की, जिसका सीधा असर ‘आप’ के प्रदर्शन पर पड़ा। इससे स्पष्ट होता है कि जो वोटबैंक पहले कांग्रेस से हटकर ‘आप’ के पक्ष में गया था, वह अब दोबारा कांग्रेस की ओर लौट रहा है।विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव कई कारणों से हुआ, जिसमें कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होना, विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की सक्रिय भागीदारी, और भाजपा विरोधी मतदाताओं का विभाजन शामिल है।
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति और ‘आप’ पर प्रहार,”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में ‘आप’ सरकार पर तीखा हमला बोला और इसे ‘झूठों की सरकार’ बताया। भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान ‘आप’ की नीतियों, कथित भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं को निशाना बनाया। इन मुद्दों ने मतदाताओं पर असर डाला और भाजपा को बढ़त दिलाने में मदद की।इसके अलावा, भाजपा ने ‘डबल इंजन सरकार’ की बात को जोर-शोर से प्रचारित किया और मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश की कि अगर दिल्ली में भी भाजपा की सरकार होगी तो केंद्र और राज्य मिलकर राजधानी के विकास को नई ऊंचाई तक ले जाएंगे।“
जातीय और धार्मिक समीकरणों पर भाजपा की पकड़”
दिल्ली विधानसभा चुनावों में विभिन्न जातियों और धर्मों के मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति लंबे समय से चली आ रही है। इस बार भाजपा ने दलित समुदाय पर विशेष ध्यान दिया और प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैलियों में ‘जय भीम’ का नारा लगाकर इस वर्ग को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।भाजपा की इस रणनीति का असर देखने को मिला और कई दलित मतदाता, जो पहले ‘आप’ के समर्थक थे, भाजपा की ओर झुके। इसी तरह, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और सवर्ण मतदाताओं के बीच भी भाजपा ने अपने जनाधार को मजबूत किया।
“पूर्वांचली वोटों पर चुनावी जंग”
दिल्ली की आबादी में पूर्वांचली (बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड) समुदाय की बड़ी हिस्सेदारी है। पिछले कुछ चुनावों में इन समुदायों के मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दल प्रयास करते रहे हैं। इस बार भी भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ ने पूर्वांचली मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की।प्रधानमंत्री मोदी और अन्य भाजपा नेताओं ने अपने भाषणों में पूर्वांचली मतदाताओं की समस्याओं पर जोर दिया और उन्हें भाजपा के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा, दिल्ली में भाजपा की राज्य इकाई ने पूर्वांचली नेताओं को चुनाव प्रचार में आगे बढ़ाकर इस समुदाय में पकड़ मजबूत करने की कोशिश की।
“आम आदमी पार्टी के लिए सबक और आगे की रणनीति”
आम आदमी पार्टी को इस हार से सबक लेते हुए अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। पार्टी के लिए यह जरूरी है कि वह जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ को मजबूत करे और मतदाताओं के साथ सीधा संवाद बढ़ाए।संगठन को मजबूत करना,पार्टी को अपने संगठन को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है। ‘आप’ का मूल समर्थन आम जनता और सामाजिक कार्यकर्ताओं से आता है, लेकिन हाल के वर्षों में पार्टी का जमीनी संगठन कमजोर पड़ा है। पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को अधिक अधिकार देने होंगे ताकि वे अपने क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से काम कर सकें।
दिल्ली की जनता के बीच आम आदमी पार्टी की पहचान एक काम करने वाली सरकार के रूप में रही है, लेकिन इस चुनाव में पार्टी का प्रचार अभियान कमजोर नजर आया। पार्टी को जनता के साथ सीधा संवाद बढ़ाने की जरूरत है। मोहल्ला सभाओं, जनसंवाद कार्यक्रमों और सोशल मीडिया अभियानों के जरिए लोगों से जुड़ने की रणनीति कारगर साबित हो सकती है।
आप’ को अपने नेतृत्व को लेकर भी स्पष्टता दिखानी होगी। पार्टी में कई प्रमुख नेता विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग बयान देते रहे हैं, जिससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी। पार्टी को अपने संदेश को एकजुट और प्रभावी बनाना होगा।
भाजपा की मजबूत चुनावी मशीनरी और कांग्रेस के उभरते वोटबैंक से मुकाबला करने के लिए ‘आप’ को नई रणनीति बनानी होगी। पार्टी को भाजपा के आक्रामक प्रचार तंत्र का जवाब देने के लिए एक प्रभावी नैरेटिव तैयार करना होगा और कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए मतदाताओं को अपनी ओर बनाए रखना होगा।
दिल्ली चुनावों में हार आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन यह पार्टी के लिए सीखने और अपनी रणनीति को सुधारने का अवसर भी है। पार्टी को अब जमीनी स्तर पर अधिक सक्रिय होना होगा, संगठन को मजबूत करना होगा और जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए नए तरीके अपनाने होंगे। अगर ‘आप’ अपनी गलतियों से सीखती है और अपनी कमजोरियों को दूर करती है, तो भविष्य में वह एक बार फिर मजबूत वापसी कर सकती है।