नैनीताल।हिन्दी न्यूज़ उत्तराखंड सरकार द्वारा वर्चुअल और पेपरलेस रजिस्ट्री लागू करने एवं विवाह व वसीयत पंजीकरण की प्रक्रिया को सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) के माध्यम से कराए जाने के फैसले के खिलाफ प्रदेश के अधिवक्ताओं, स्टाम्प विक्रेताओं, दस्तावेज लेखकों और अरायज नवीसों में भारी रोष व्याप्त है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह फैसला न केवल उनकी आजीविका को प्रभावित करेगा, बल्कि आम जनता को भी कानूनी जटिलताओं और धोखाधड़ी की आशंका में डाल देगा।
प्रदेशभर के अधिवक्ताओं और स्टाम्प विक्रेताओं ने इस फैसले का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में अधिवक्ताओं ने वर्चुअल रजिस्ट्री और सीएससी केंद्रों पर पंजीकरण प्रक्रिया लागू करने के निर्णय को वापस लेने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि 10 दिनों के भीतर सरकार इस व्यवस्था को वापस नहीं लेती है, तो वे जनता के साथ मिलकर बड़े आंदोलन को बाध्य होंगे।
“क्या है अधिवक्ताओं की प्रमुख आपत्तियां क्या है “विधि विशेषज्ञों की अनुपलब्धता सीएससी केंद्रों पर विवाह व वसीयत पंजीकरण की व्यवस्था लागू होने से आमजन को विधिक परामर्श नहीं मिल पाएगा, जिससे कानूनी जटिलताएं बढ़ेंगी।जालसाजी की बढ़ती संभावना – बिना भौतिक सत्यापन के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में फर्जीवाड़े और दबाव में दस्तावेजों के निष्पादन की आशंका बढ़ जाएगी।स्टाम्प विक्रेताओं की रोजी-रोटी पर संकट ई-स्टाम्प और वर्चुअल रजिस्ट्री के कारण हजारों स्टाम्प विक्रेता बेरोजगार हो जाएंगे।अधिवक्ताओं और दस्तावेज लेखकों की बेरोजगारी तहसीलों में कार्यरत हजारों अधिवक्ता और दस्तावेज लेखक अपनी आय खो देंगे, जिससे गरीब और जरूरतमंद लोगों को सस्ते में कानूनी सेवाएं मिलना मुश्किल हो जाएगा।साइबर सुरक्षा की गंभीर चिंता – उत्तराखंड में पूर्व में भी सरकारी पोर्टल्स पर साइबर हमले हो चुके हैं। यदि वर्चुअल रजिस्ट्री का डेटा हैक हो जाता है, तो लोगों की संपत्तियों के महत्वपूर्ण दस्तावेज खतरे में पड़ जाएंगे। बैंकों से ऋण लेने में समस्या वर्तमान व्यवस्था में बैंक संपत्ति के मूल दस्तावेज बंधक रखकर ऋण देते हैं, लेकिन वर्चुअल रजिस्ट्री की स्थिति में यह प्रक्रिया कैसे होगी, इस पर सरकार ने कोई स्पष्ट नीति नहीं दी है।
,अधिवक्ताओं ने दी आंदोलन की चेतावनी ,बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड के नेतृत्व में प्रदेश के समस्त अधिवक्ताओं, पिटीशन राइटर्स, स्टाम्प विक्रेताओं, दस्तावेज लेखकों और अरायज नवीसों ने सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि यदि 10 दिनों के भीतर इस फैसले को वापस नहीं लिया जाता, तो वे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया, तो वे तहसीलों में कामकाज ठप कर देंगे और सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे।
सरकार का तर्क है कि वर्चुअल रजिस्ट्री और पेपरलेस प्रक्रिया से पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार कम होगा। हालांकि, अधिवक्ताओं का कहना है कि बिना मजबूत साइबर सुरक्षा और स्पष्ट नीति के इसे लागू करना घातक साबित हो सकता है।
अब देखना यह होगा कि सरकार अधिवक्ताओं और अन्य प्रभावित पक्षों की मांगों पर क्या रुख अपनाती है। क्या सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी या फिर विरोध प्रदर्शन के बाद ही कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा?