बीजिंग।हिन्दी न्यूज़,अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़ा भूचाल तब आया जब चीन और रूस ने आधिकारिक तौर पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को समर्थन देने का ऐलान किया। बीजिंग में हाल ही में रूस, चीन और ईरान की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई, जिसमें इन देशों ने अमेरिका और इजराइल की आपत्तियों को दरकिनार कर ईरान के परमाणु अधिकारों का खुला समर्थन किया। इस घटनाक्रम से वॉशिंगटन और तेल अवीव में हड़कंप मच गया है, क्योंकि इससे मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन पूरी तरह बदल सकता है।
ईरान को समर्थन क्यों दे रहे हैं रूस और चीन?विश्लेषकों का मानना है कि चीन और रूस का यह कदम अमेरिका के बढ़ते दबाव का जवाब है।रूस पर यूक्रेन युद्ध को लेकर भारी प्रतिबंध लगे हुए हैं, जिससे वह पश्चिमी देशों से कटा हुआ है।चीन ताइवान को लेकर अमेरिका के साथ तनाव में है और मध्य पूर्व में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है।ईरान के परमाणु शक्ति संपन्न होने से अमेरिका को नई चुनौती मिलेगी, जिससे वह चीन और रूस पर अपना ध्यान कम कर सकता है।
बैठक के बाद चीन और रूस ने एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि “ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का पूरा अधिकार है। अमेरिका द्वारा लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध अवैध हैं और उन्हें हटाया जाना चाहिए।”चीन के उप विदेश मंत्री मा ज़ाओक्सू ने कहा कि ,शांति के लिए कूटनीतिक समाधान जरूरी है। दबाव और प्रतिबंधों की नीति से स्थिरता नहीं लाई जा सकती।”
अमेरिका-इजराइल के लिए क्यों बढ़ी चिंता?मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन बदलेगा अगर ईरान परमाणु शक्ति संपन्न होता है, तो यह अमेरिका और इजराइल के लिए बड़ी चुनौती होगी।सऊदी अरब पर दबाव बढ़ेगा ईरान के परमाणु शक्ति बनने से सऊदी अरब भी अपने सुरक्षा उपायों को लेकर नया कदम उठा सकता है।अमेरिका की सैन्य नीति को झटका , अमेरिका के कई सैन्य अड्डे मध्य पूर्व में स्थित हैं और ईरान का न्यूक्लियर ट्राइएंगल इसमें बड़ी रुकावट डाल सकता है।
अमेरिका ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगा सकता है।इजराइल सैन्य कार्रवाई पर विचार कर सकता है।सऊदी अरब और अन्य अरब देश नई रणनीति बना सकते हैं।
बीजिंग में हुई यह बैठक वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ साबित हो सकती है। रूस-चीन-ईरान के गठबंधन से अमेरिका और इजराइल की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अगर यह टकराव और आगे बढ़ता है, तो मध्य पूर्व में एक नया भू-राजनीतिक संकट खड़ा हो सकता है। है।