हिन्दी न्यूज़ ,इस्लाम धर्म में ज़कात एक महत्वपूर्ण इबादत मानी जाती है, जिसका उद्देश्य समाज में आर्थिक संतुलन बनाए रखना और जरूरत मंदों की मदद करना है। ज़कात को इस्लाम की पांच बुनियादी इबादतों में से एक माना जाता है,जो एक मुसलमान के लिए अनिवार्य है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जिलाध्यक्ष मौलाना क़ासमी के अनुसार, ज़कात का अर्थ अपने माल यानी धन-संपत्ति को पाक और पवित्र करना है।“
ज़कात अदा करने की शर्तें “मौलाना क़ासमी बताते हैं कि ज़कात वही व्यक्ति अदा कर सकता है, जो बालिग हो और साहिबे-निसाब हो। निसाब उस न्यूनतम धनराशि को कहते हैं, जिस पर ज़कात देना अनिवार्य हो जाता है। वर्तमान में, यदि किसी व्यक्ति के पास 52.5 तोला चांदी, 7.5 तोला सोना, या व्यापार से अर्जित एक निश्चित राशि है, तो उस पर ज़कात अनिवार्य हो जाती है। ज़कात तभी दी जाती है, जब किसी व्यक्ति की संपत्ति पर पूरा एक साल गुजर चुका हो।
“ज़कात किन्हें दी जा सकती है?”मौलाना बताते हैं कि ज़कात उन लोगों को दी जानी चाहिए, जो गरीब और जरूरतमंद हों। हालांकि, इसे अपने माता-पिता, पति-पत्नी या संतान को नहीं दिया जा सकता है। लेकिन भाई-बहन, मामू, मासी और अन्य जरूरतमंद रिश्तेदारों को ज़कात दी जा सकती है। ज़कात में केवल पैसे ही नहीं, बल्कि अनाज भी दिया जा सकता है।
“भारत में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति और ज़कात का प्रभाव”भारत में लगभग बीस करोड़ मुसलमान हैं, लेकिन इसके बावजूद तीसरा या चौथा मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है। मौलाना क़ासमी का मानना है कि इसकी मुख्य वजह यह है कि ज़कात को पूरी ईमानदारी से नहीं दिया जा रहा है। उनका कहना है कि यदि मुसलमान सही तरीके से ज़कात अदा करें, तो समाज में गरीबी और भुखमरी को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
मौलाना मुकीम सुझाव देते हैं कि ज़कात का इस्तेमाल जरूरतमंदों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने, बीमारों के इलाज, बेटियों की शादी, और व्यवसाय को आगे बढ़ाने में किया जाना चाहिए। इसके अलावा, हर शहर में ज़कात फंड बनाए जाने चाहिए, जिससे ज़कात को सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।
“क्या ज़कात शिक्षा के लिए दी जा सकती है?” इस सवाल के जवाब में मौलाना मुकीम बताते हैं कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद स्कॉलरशिप के रूप में हर साल दो करोड़ रुपये बांटती है, जो ज़कात की रकम से ही दिया जाता है। यह स्कॉलरशिप उन छात्रों को दी जाती है, जो आर्थिक तंगी के कारण आगे नहीं पढ़ पाते हैं। मौलाना का कहना है कि शिक्षा में ज़कात का निवेश बहुत फायदेमंद है, क्योंकि यह समाज के आर्थिक और सामाजिक उत्थान में मदद करता है।
ज़कात इस्लाम का एक महत्वपूर्ण आर्थिक सिद्धांत है, जो समाज में आर्थिक असमानता को कम करने में सहायक है। यदि इसे सही तरीके से अदा किया जाए, तो समाज में गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी जैसी समस्याओं को दूर किया जा सकता है। मुसलमानों को चाहिए कि वे ईमानदारी और जिम्मेदारी से ज़कात अदा करें, ताकि समाज के गरीब और जरूरतमंद तबके को इसका पूरा लाभ मिल सके।