मुसलमानों में गरीबी: जकात की ईमानदारी से बंटवारे की ज़रूरत

हिन्दी न्यूज़,भारत में मुस्लिम समाज में गरीबी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। जबकि इस समाज के पास धार्मिक रूप से एक मजबूत आर्थिक तंत्र मौजूद है – जकात। जकात इस्लाम का एक अनिवार्य स्तंभ है, जो अमीरों से लेकर गरीबों तक धन के सही वितरण की प्रणाली को सुनिश्चित करता है। लेकिन आज सवाल यह उठता है कि जब हर साल लाखों करोड़ों की ज़कात निकालने के बावजूद भी मुसलमानों में गरीबी क्यों बनी हुई है? क्यों एक गरीब मुसलमान मस्जिद के बाहर अपनी बेटी की शादी या अपने इलाज के लिए भीख मांगता दिखता है?

क्या समस्या सिर्फ पैसे की है? अगर आंकड़ों की बात करें तो भारत में मुस्लिम समुदाय से हर साल करीब 20 लाख करोड़ रुपये की जकात निकलती है। यह रकम इतनी बड़ी है कि इससे पूरे मुस्लिम समाज को गरीबी से उबारा जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद, हर तीसरा या चौथा मुसलमान गरीब या भिखारी के रूप में नजर आता है।

इसका मतलब साफ है कि समस्या पैसे की कमी की नहीं, बल्कि ईमानदारी की कमी की है। अगर सही तरीके से जकात को जरूरतमंदों तक पहुंचाया जाए, तो कोई भी मुसलमान गरीब नहीं रहेगा। लेकिन आज के हालात में जकात देने वाले तो बहुत हैं,पर लेने और देने वालों में ईमानदारी की भारी कमी है।

“अगर हम गौर करें तो हजरत उमर (र.अ) का ज़माना और आज का दौर” इस संदर्भ में हजरत उमर (र.अ) के शासनकाल की मिसाल बहुत अहम है। हजरत उमर जब जकात की रकम इकट्ठा करवाते थे, तो सबसे पहले इसे गरीबों में बांटा जाता था। जब उनके अधिकारियों ने बताया कि “अब हमारे समाज में कोई गरीब नहीं बचा,” तो उन्होंने कर्जदारों का कर्ज उतारने का आदेश दिया। फिर जब बताया गया कि सभी कर्जदारों के कर्ज भी चुका दिए गए, तब उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालों को इस रकम से मदद देने को कहा। जब वहां भी जरूरत पूरी हो गई, तो उन्होंने कहा कि गैर-मुस्लिमों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी मदद की जाए। फिर जब यह भी हो गया और पैसे फिर भी बच गए, तो उन्होंने अनाज खरीदकर खुले मैदानों और पहाड़ों में बिखरवा दिया ताकि देश के जानवर व परिन्दे भी भूखे न रहें।

यह एक ऐसा शानदार प्रशासनिक मॉडल था, जिसमें जकात का सही वितरण हुआ और इसका लाभ सिर्फ मुसलमानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समाज के हर जरूरतमंद तक पहुंचा। लेकिन आज की हकीकत इसके ठीक विपरीत है।

आज की जकात व्यवस्था में खामियां, बहुत सारे लोग जकात के हकदार न होते हुए भी झूठे दस्तावेज बनवाकर इसे हड़प लेते हैं। कई संस्थाएं और व्यक्ति जकात के नाम पर धन इकट्ठा तो करते हैं, लेकिन इसका पूरा लाभ गरीबों तक नहीं पहुंचाते। जकात को व्यवस्थित तरीके से खर्च नहीं किया जाता, जिससे कई जरूरतमंद लोग इससे वंचित रह जाते हैं। ज़कात को तात्कालिक जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है, लेकिन इसे शिक्षा और रोजगार के लिए नहीं लगाया जाता, जिससे गरीबी स्थायी बनी रहती है।

अब इसका समाधान क्या है? ईमानदार और पारदर्शी व्यवस्था – जकात का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए एक संगठित प्रणाली बनाई जाए, जिसमें इसका हिसाब-किताब सार्वजनिक हो। योग्य हक दारों की पहचान सही जरूरतमंदों तक जकात पहुंचे, इसके लिए एक मजबूत डेटा प्रणाली विकसित की जाए। शिक्षा और रोजगार पर ध्यान – जकात का बड़ा हिस्सा गरीब मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार पर खर्च किया जाए, ताकि वे खुद अपने पैरों पर खड़े हो सकें सामुदायिक भागीदारी – पूरे मुस्लिम समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि जकात सही हाथों में जाए और उसका उपयोग प्रभावी ढंग से हो।तकनीक का उपयोग – एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जाए, जहां जकात की सही जानकारी, जरूरतमंदों की सूची और इसका पारदर्शी वितरण हो।

गौरतलब तलब है कि मुसलमानों की गरीबी का कारण पैसे की कमी नहीं, बल्कि ईमानदारी और सही प्रबंधन की कमी है। अगर हजरत उमर (र.अ) के प्रशासन की तर्ज पर जकात का सही ढंग से वितरण किया जाए, तो सिर्फ पांच साल में भारत में मुस्लिम समाज की गरीबी खत्म हो सकती है। जरूरी है कि हम ईमानदारी, पारदर्शिता और शिक्षा पर जोर दें और अपनी सोच को सिर्फ खुद तक सीमित न रखें, बल्कि पूरे समाज के हित में आगे बढ़ें। जब तक जकात का सही उपयोग नहीं होगा, तब तक मुसलमानों की गरीबी मिटाना सिर्फ एक सपना बना रहेगा।

ज़कात इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और इसे धार्मिक कर (टैक्स) माना जाता है, जिसे हर समर्थ मुसलमान को अदा करना आवश्यक है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में आर्थिक संतुलन बनाए रखना और गरीबों, जरूरतमंदों की मदद करना है।

क़ुरआन में ज़कात को कई जगह नमाज़ के साथ उल्लेख किया गया है:“नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो”(क़ुरआन2:110)“तुम्हारी संपत्ति में गरीबों और जरूरतमंदों का भी हक़ है” (क़ुरआन 51:19)

 

ज़कात सिर्फ एक आर्थिक दायित्व नहीं, बल्कि समाज में सहयोग और न्याय का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह धन को कुछ लोगों के पास केंद्रित होने से रोकता है और जरूरतमंदों को सहारा देता है।

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