रामनगर,हिंदी न्यूज ।वनाधिकार संघर्ष मोर्चा द्वारा उत्तराखंड उच्च न्यायालय के हालिया फैसले और वनाधिकार कानून 2006 के तहत वन गूजर समुदाय को उनके अधिकार सुनिश्चित करने हेतु रामनगर में एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। यह बैठक तराई पश्चिमी वन प्रभाग, रामनगर द्वारा वन गूजरों को खेती की जमीन से बेदखली की कार्रवाई पर उच्च न्यायालय के 16 जून 2025 के ऐतिहासिक फैसले के प्रचार-प्रसार और वन गूजरों को जनजाति का दर्जा दिलाने की मांग को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित की गई।
बैठक को संबोधित करते हुए वन गूजरों के मामले में उच्च न्यायालय में पैरवी करने वाली युवा अधिवक्ता तनुप्रिया जोशी ने कहा कि 16 जून 2025 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने वनाधिकार कानून 2006 के अनुपालन को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। इस फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वनाधिकार कानून के तहत दावा प्रस्तुत करने वाले व्यक्तियों को उनके दावों पर अंतिम निर्णय आने तक उनकी जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी कहा कि वन गूजर समुदाय अपनी आजीविका और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वन भूमि पर खेती कर सकता है, हालांकि व्यावसायिक खेती की अनुमति नहीं होगी।तनुप्रिया जोशी ने वन गूजर समुदाय को सलाह दी कि यदि वन विभाग द्वारा किसी व्यक्ति को बेदखली का नोटिस प्राप्त होता है, तो उसे उस नोटिस का जवाब अवश्य देना चाहिए। उन्होंने कहा, “नोटिस का जवाब देने से वन विभाग की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सकता है और यह समुदाय के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।”
बैठक में वन गूजर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा प्रदान करने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने बताया कि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में वन गूजर समुदाय को पहले ही जनजाति का दर्जा प्राप्त है, लेकिन उत्तराखंड में इस समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में रखा गया है, जो संवैधानिक रूप से अनुचित है।वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि वन गूजर समुदाय अपनी भाषा, बोली, रहन-सहन, पहनावा, और संस्कृति के आधार पर जनजाति की सभी परिभाषाओं और मानदंडों को पूरा करता है। इसके अतिरिक्त, पूर्व में उत्तराखंड सरकारों द्वारा कराए गए सर्वेक्षणों में भी वन गूजरों को जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश की जा चुकी है। वक्ताओं ने मांग की कि उत्तराखंड सरकार को बिना किसी देरी के वन गूजर समुदाय को जनजाति का दर्जा प्रदान करना चाहिए, ताकि इस समुदाय को उनके संवैधानिक अधिकार प्राप्त हो सकें।
बैठक में कई प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने अपने विचार रखे। इनमें शामिल थे ,हीरा जंगपांगी, जिन्होंने वन गूजरों के संघर्ष को सामाजिक और कानूनी मंचों पर मजबूत करने की बात कही। मौहम्मद सफी और मौहम्मद कासिम, जिन्होंने समुदाय की एकजुटता और अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया।महेश जोशी (किसान संघर्ष समिति), जिन्होंने वन गूजरों के साथ अन्य वंचित समुदायों के समन्वय की जरूरत बताई।जैनब, जिन्होंने वन गूजर महिलाओं के मुद्दों को उठाया और उनकी भागीदारी को बढ़ाने की अपील की।मीरा हमजा (वन गूजर युवा ट्राइबल संगठन की अध्यक्ष), जिन्होंने युवाओं को इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।एडवोकेट मदन सिंह और पीसी जोशी, जिन्होंने कानूनी और नीतिगत दृष्टिकोण से समुदाय के अधिकारों की रक्षा के उपाय सुझाए।तरुण जोशी (वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष), जिन्होंने वन पंचायतों और वन गूजरों के बीच सहयोग की संभावनाओं पर प्रकाश डाला।बैठक का संचालन समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने किया, जिन्होंने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बैठक में वन गूजर समुदाय के लोगों के साथ-साथ रामनगर के आसपास के ग्राम पूछड़ी, कालू सिद्ध, और अन्य गांवों के ग्रामीणों ने भी हिस्सा लिया। महिला एकता मंच की महिलाओं ने भी बैठक में सक्रिय भागीदारी की और वन गूजर महिलाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर चर्चा की।
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि वनाधिकार संघर्ष मोर्चा वन गूजरों के अधिकारों और जनजाति दर्जे की मांग को लेकर अपना आंदोलन और तेज करेगा। इसके लिए सामुदायिक जागरूकता अभियान, कानूनी सहायता शिविर, और सरकारी स्तर पर दबाव बनाने की रणनीति तैयार की जाएगी। साथ ही, वन विभाग की मनमानी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और सामुदायिक संगठन को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।