मतलुब अहमद
नैनीताल: हल्द्वानी के दमुआडूंगा क्षेत्र, जो वर्ष 1952 से बसा हुआ है, आज भी अपने 7000 परिवारों के भूमिधरी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। यह क्षेत्र वर्ष 1965 में भारतीय वन अधिनियम की धारा 20 के तहत आरक्षित वन घोषित किया गया था। इसके खिलाफ स्थानीय निवासी नित्यानंद भट्ट ने न्यायिक लड़ाई लड़ी और सर्वोच्च न्यायालय ने वन विभाग की याचिका खारिज करते हुए क्षेत्र को आरक्षित वन से मुक्त कर दिया।
इसके बावजूद, वर्ष 1993 में पुनः 643 एकड़ भूमि को आरक्षित वन घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की गई। 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उत्तराखंड जमींदारी विनाश और भू-सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन कर दमुआडूंगा क्षेत्रवासियों को भूमिधरी अधिकार देने का प्रावधान किया। इसके तहत राज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना के बाद क्षेत्रवासियों को धारा 131 के तहत असंक्रमणीय अधिकार वाला भूमिधर घोषित किया गया।
हालांकि, वर्तमान सरकार ने पिछले 8 वर्षों में इन प्रक्रियाओं को लागू करने में असमर्थता दिखाई है। 2020 में सर्वेक्षण और अभिलेखों की प्रक्रिया को भी रोक दिया गया, जिसका हवाला भू-राजस्व अधिनियम की धारा 48 का दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में धारा 39 के तहत कलेक्टर को जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी।
सरकार द्वारा पारित कानूनों के अनुपालन में देरी और अधिकारों की अनदेखी से क्षेत्र के निवासियों में भारी आक्रोश है। 8 वर्षों से लंबित इस मुद्दे ने जनता को सड़क से सदन तक आंदोलन करने के लिए मजबूर कर दिया है
क्षेत्रीय नेताओं और नागरिकों ने वर्तमान सरकार पर जनता के मूल अधिकारों को नजरअंदाज करने और भ्रम की स्थिति पैदा करने का आरोप लगाया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र समाधान नहीं निकला तो बड़े स्तर पर आंदोलन होगा।
इस सभा का नेतृत्व एडवोकेट गोविंद सिंह बिष्ट (अध्यक्ष, महानगर कांग्रेस कमेटी एवं पूर्व अध्यक्ष, बार एसोसिएशन हल्द्वानी) ने किया। इस अवसर पर क्षेत्रीय समस्याओं और उनके समाधान को लेकर संवाद भी किया।
इसके अलावा प्रकाश पांडे, महेशानंद, हरीश लाल वैध, मन्नू गोस्वामी, जगदीश भारती, लाल सिंह पवार, जीवन गोस्वामी, राजेन्द्र सिंह राणा, चंदन गोस्वामी, कृष्ण कुमार, संजय जोशी, बबलू बिष्ट, राजकुमार जोशी, आनंद बिष्ट, जीवन बिष्ट, दीपा टम्टा, सीमा लोहानी आदि मौजूद रहे।