♦मतलुब अहमद
रामनगर: वन पंचायत संघर्ष मोर्चा द्वारा वन अधिकार कानून को लेकर रामनगर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से आए वन पंचायतों के सरपंच, गोठ, खत्तों, वन ग्रामों और गूजर बस्तियों के निवासियों ने भाग लिया।
वन अधिकारों पर चर्चा और सरकार पर आरोप
कार्यशाला में वक्ताओं ने उत्तराखंड में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन की वर्तमान स्थिति पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि पिछले 18 वर्षों से बनवासियों के वन अधिकार के दावे लंबित पड़े हैं। सरकार और वन विभाग पर परंपरागत वनाश्रित समुदायों के अधिकारों पर कुठाराघात करने और उन्हें अवैध रूप से बेदखल करने का आरोप लगाया गया। वक्ताओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन बताया।
मांगें और निर्णय
बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि बिंदुखत्ता की तर्ज पर अन्य वन ग्रामों को भी राजस्व गांव का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसके अलावा, लंबित दावों के शीघ्र निस्तारण और वन पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए दिसंबर माह में प्रदेश भर में यात्राएं, बैठकें और गोष्ठियां आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
जंगली जानवरों के आतंक पर चिंता
वक्ताओं ने उत्तराखंड में जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक को लेकर चिंता व्यक्त की और इसे रोकने के लिए कारगर कदम उठाने की मांग की।
बैठक में वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी, गोपाल लोधियाल, अल्मोड़ा बिनसर सेंचुरी से ईश्वर जोशी, अस्कोट अभयारण्य से खीमा वन, पंचायत संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष दान सिंह कठायत, वन गूजर समुदाय के प्रतिनिधि मोहम्मद शफी, पूर्वी तराई डिविजन के अध्यक्ष मोहम्मद कासिम, तराई केंद्रीय डिवीजन से मोहम्मद शरीफ, तराई पश्चिमी डिवीजन के अध्यक्ष मोहम्मद कासिम, बिंदु खत्ता से भुवन भट्ट, बसंत पांडे, बागेश्वर पिंडारी से मोहन दानू, महिला एकता मंच से सरस्वती जोशी, हेमा जोशी भीमताल से जगदीश चंद मुक्तेश्वर, समाजवादी लोक मंच से मुनीष कुमार,वन गांव पूछडी रमेश चन्द्र , अंजलि रावत, घनानंद ममगाईं, किसान संघर्ष समिति के ललित उप्रेती आदि शामिल रहे।
कार्यशाला में विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव और परेशानियों को साझा किया। वक्ताओं ने वनाश्रित समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर संघर्ष जारी रखने की बात कही।