राष्ट्रीय खेलों के निमंत्रण कार्ड में कांग्रेस सरकार की अनदेखी? सदन में उठाया सवाल,

रिपोर्ट,मतलुब अहमद

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के दूसरे दिन सदन में एक बड़ा सवाल उठा। कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश ने आरोप लगाया कि हाल ही में उत्तराखंड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों के निमंत्रण कार्ड में कांग्रेस सरकार द्वारा निर्मित स्टेडियमों के नामों का पूरा उल्लेख नहीं किया गया। उन्होंने इसे ऐतिहासिक तथ्यों को छिपाने और पूर्ववर्ती सरकार के योगदान को नजरअंदाज करने का प्रयास करार दिया। इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए इसे कांग्रेस सरकार की उपेक्षा बताया।

 

हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश ने सदन में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण स्टेडियमों का निर्माण कराया था। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से हल्द्वानी में स्थित स्टेडियम, जो कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बना था, उसका पूरा नाम तक निमंत्रण कार्ड में नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा, “देश की दो दिवंगत प्रधानमंत्री, स्वर्गीय राजीव गांधी जी और स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी, जिन्होंने शहादत दी, उनके नाम पर बने स्टेडियम को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। कांग्रेस सरकार ने 200 करोड़ रुपये की लागत से इस स्टेडियम का निर्माण कराया था, लेकिन अब भाजपा सरकार उसकी वाहवाही लूट रही है।”

इस आरोप पर सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं का कहना है कि निमंत्रण कार्ड में केवल आवश्यक जानकारी ही दी गई थी और इसमें किसी भी सरकार के योगदान को कमतर आंकने की मंशा नहीं थी। भाजपा नेताओं का तर्क है कि निमंत्रण कार्ड का उद्देश्य केवल खेलों के आयोजन की जानकारी देना था, न कि किसी विशेष सरकार के योगदान को उजागर करना।

 

विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला और इसे राजनीतिक दुर्भावना करार दिया। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि अगर सरकार निष्पक्ष होती तो निमंत्रण कार्ड में सभी स्टेडियमों का पूरा विवरण दिया जाता। कांग्रेस का दावा है कि भाजपा सरकार जानबूझकर कांग्रेस सरकार के योगदान को कमतर दिखाने की कोशिश कर रही है।

राष्ट्रीय खेल जैसे बड़े आयोजनों में राजनीति का प्रवेश होना एक चिंताजनक विषय है। खेलों को राजनीति से दूर रखने और सभी सरकारों के योगदान को स्वीकार करने की आवश्यकता है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि खेल केवल खिलाड़ियों और देश की प्रतिष्ठा से जुड़े होने चाहिए, न कि राजनीतिक विवादों का केंद्र बनने चाहिए।

अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है। क्या सरकार विपक्ष के आरोपों का जवाब देगी, या यह मुद्दा सदन में और गर्माएगा? विपक्ष ने संकेत दिया है कि अगर सरकार इस विषय पर चुप्पी साधे रखती है, तो पुरजोर तरीके से आवाज उठाते रहेंगे।

राजनीति और खेलों के इस संगम में यह सवाल उठता है कि क्या खेलों को सच में राजनीति से मुक्त रखा जा सकता है? क्या पूर्ववर्ती सरकारों के योगदान को इस तरह अनदेखा करना उचित है? यह बहस आने वाले दिनों में और जोर पकड़ सकती है।

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