उत्तराखंड उच्च न्यायालय में यूसीसी के खिलाफ सुनवाई, याचिकाकर्ताओं ने बताया असंवैधानिक

नैनीताल, हिन्दी न्यूज़,उत्तराखंड उच्च न्यायालय में समान नागरिक संहिता (UCC) के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। उत्तराखंड महिला मंच की उमा भट्ट, कमला पंत और समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार द्वारा दायर इस याचिका में UCC को चुनौती दी गई है और लिव-इन जोड़ों की सुरक्षा तथा निजता की कानूनी गारंटी की मांग की गई है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज तिवारी और आशीष नैथानी की खंडपीठ के समक्ष हुई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट की प्रख्यात अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने अदालत में दलील दी कि यह कानून 392 प्रावधानों और नियमों के साथ लागू किया गया है, जो नागरिकों की निजी ज़िंदगी पर सीधा असर डालता है। उन्होंने कहा कि यह कानून नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुट्टा स्वामी जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि राज्य को नागरिकों की निजी जानकारी लेने का अधिकार नहीं है, लेकिन UCC के तहत लोगों के निजी रिश्तों की जानकारी मांगी जा रही है, जो असंवैधानिक है।

ग्रेवर ने कहा, “यह कानून महिलाओं के अधिकारों को मजबूत नहीं करता, बल्कि उनके निजी जीवन को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। यह तय करेगा कि लोग किसके साथ रह सकते हैं और किसके साथ नहीं। साथ ही, यह पंजीयक और पुलिस को अनावश्यक अधिकार देता है, जिससे लोगों का उत्पीड़न बढ़ सकता है।”

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने कहा कि “लिव-इन संबंध समाज में बढ़ रहे हैं, हालांकि इन्हें पूर्ण सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है। यह कानून समय के साथ हो रहे बदलावों को समायोजित करने और महिलाओं तथा ऐसे संबंधों में जन्मे बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा का प्रयास कर रहा है।”

ग्रेवर ने जवाब में कहा कि “इस कानून को महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बताया जा रहा है, लेकिन इसका गहन विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह उन महिलाओं और जोड़ों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा को बढ़ावा देगा, जो बहुसंख्यकवादी मान्यताओं को नहीं मानते।”

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि “UCC माता-पिता और अन्य असामाजिक तत्वों को पंजीकृत व्यक्तियों की निजी जानकारी तक पहुँचने का अवसर देता है, जिससे व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाती है। यह कानून किसी भी व्यक्ति को लिव-इन संबंध की वैधता को चुनौती देने का अधिकार देता है, जिससे निजी मामलों में अनावश्यक कानूनी विवाद बढ़ सकते हैं।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि “सामाजिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता पर हावी नहीं होने दिया जाना चाहिए।”

,”राज्य सरकार का पक्ष”राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता (SG) ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि सरकार इस मामले पर नजर बनाए हुए है और किसी के साथ कोई जबरदस्ती या कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।सुनवाई के बाद न्यायालय ने याचिकाओं पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किए और याचिका कर्ताओं की दलीलों को ध्यान में रखते हुए आदेश दिया कि “यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाती है, तो वे इस पीठ के समक्ष आवेदन करने के लिए स्वतंत्र होंगे।”

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, देविका तुलसियानी और उत्तराखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता नवनीश नेगी का न्यायालय में मजबूती से पक्ष रखने के लिए आभार व्यक्त किया।

गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट में कानूनी लड़ाई तेज हो गई है। याचिकाकर्ताओं ने इसे असंवैधानिक बताते हुए इसे निजता के अधिकार के विरुद्ध बताया, जबकि राज्य सरकार ने इसे महिलाओं और बच्चों के हित में बताया। अब अदालत इस मामले पर आगे क्या रुख अपनाती है, यह देखने वाली बात होगी।

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