नई दिल्ली। हिंदी न्यूज़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को क्राउन प्रिंस और सऊदी अरब के प्रधानमंत्री महामहिम मोहम्मद बिन सलमान के निमंत्रण पर दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर सऊदी अरब रवाना हो गए। यह यात्रा भारत-सऊदी संबंधों को नई दिशा देने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। मोदी ने रवाना होने से पहले कहा कि वह जेद्दा में ‘रणनीतिक साझेदारी परिषद’ की दूसरी बैठक में भाग लेंगे और सऊदी अरब में भारतीय समुदाय के साथ संवाद करेंगे।
प्रधानमंत्री ने अरब न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भारत सऊदी अरब को एक विश्वसनीय मित्र और रणनीतिक सहयोगी मानता है। उन्होंने 2019 में गठित सामरिक साझेदारी परिषद के तहत द्विपक्षीय संबंधों में हुए महत्वपूर्ण विस्तार का उल्लेख किया।
भारत और सऊदी अरब के बीच रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, निवेश और प्रवासी भारतीयों के मुद्दों पर सहयोग लगातार गहराता जा रहा है। दोनों देशों ने हाल के वर्षों में सामरिक रिश्तों को मजबूत करते हुए द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। भारत, सऊदी अरब का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन चुका है, और दोनों देशों के बीच सालाना व्यापार $42 बिलियन डॉलर के आसपास पहुँच चुका है।

हालांकि, इस दौरे पर केवल रणनीतिक और आर्थिक मुद्दों तक ही सीमित रहने की संभावना नहीं है। सूत्रों के अनुसार, सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक में भारत में वक्फ संपत्तियों की स्थिति और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़े विषयों को भी उठा सकते हैं।
देशभर में वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जों, सरकारी दखल और वक्फ अधिनियम में हाल में किए गए बदलावों को लेकर मुस्लिम समुदाय में रोष है। माना जा रहा है कि सऊदी अरब, जो इस्लामिक दुनिया में एक प्रभावशाली भूमिका निभाता है, भारत में मुस्लिमों के सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त कर सकता है।
“बीजेपी की नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय नजर”इसके अलावा, भारत में मुसलमानों को लेकर बीते वर्षों में उठे विवाद—जैसे हिजाब प्रतिबंध, ‘लव जिहाद’ के नाम पर हमले, धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते टकराव,सऊदी नेतृत्व के लिए भी चिंता का विषय बन सकते हैं। यदि इन मुद्दों को सऊदी प्रिंस द्वारा आधिकारिक रूप से उठाया जाता है, तो यह भारत की घरेलू नीति में एक अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है।
“राजनीतिक और वैश्विक छवि पर असर “विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सऊदी अरब जैसे करीबी मित्र देश भारत की आंतरिक नीतियों पर सवाल उठाते हैं, तो इससे न केवल मोदी सरकार की छवि पर असर पड़ सकता है, बल्कि भारत-सऊदी संबंधों में भी नई जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं। अभी तक भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से इस संभावित चर्चा पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
सऊदी अरब के साथ संबंधों को लेकर भारत का रुख हमेशा से व्यावसायिक और कूटनीतिक दोनों स्तरों पर संतुलित रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इस बार के संवाद में नाजुक मुद्दों पर कैसे संतुलन बनाए रखते हैं।
गौरतलब है कि मोदी की यह सऊदी यात्रा रणनीतिक साझेदारी को नई ऊँचाई देने का एक सुनहरा अवसर है, लेकिन अगर मुस्लिम अल्पसंख्यकों और वक्फ संपत्तियों से जुड़े मुद्दे बैठक में उभरते हैं, तो यह भारत की घरेलू नीतियों और वैश्विक छवि के लिए एक चुनौतीपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।