सहारनपुर,हिंदी न्यूज़ ,उत्तर प्रदेश के सहरानपुर जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षा केंद्र दारुल उलूम देवबंद आज एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बना, जब अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने यहां पहुंचकर तालिबान शासन के नेतृत्व की ओर से गहन सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव को मजबूत करने का संकल्प जताया। मुत्तकी का यह दौरा न केवल भारत और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते कूटनीतिक संबंधों का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापारिक सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी साबित हो रहा है।
मुत्तकी शनिवार दोपहर करीब 2 बजे देवबंद पहुंचे, जहां उन्हें दारुल उलूम के उलेमा, छात्रों और स्थानीय लोगों ने गर्मजोशी भरा स्वागत किया। संस्थान के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने बताया कि विदेश मंत्री का आगमन दोपहर 3 बजे के आसपास निर्धारित सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए था, जिसमें उन्होंने छात्रों और आम जनता को संबोधित किया। स्वागत समारोह में उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर भी प्रदान किया गया, जो अफगान-अमेरिकी संबंधों के बाद भारत के साथ नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देता है।
देवबंद पहुंचते ही पत्रकारों से बातचीत में मुत्तकी ने अपने दौरे के उद्देश्य पर खुलकर बोला। जब उनसे पूछा गया कि वे देवबंद क्यों आ रहे हैं, तो उन्होंने भावुक अंदाज में जवाब दिया: “लोग देवबंद (दारुल उलूम) क्यों जाते हैं… नमाज अदा करने… शिक्षकों और छात्रों से मिलने उन्होंने दारुल उलूम को “इस्लामी अध्ययन का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक केंद्र” करार देते हुए कहा, “देवबंद के अकाबिर उलेमा और अफगानिस्तान के बीच गहरे जड़ें वाली ऐतिहासिक संबंध हैं। दारुल उलूम देवबंद एक रूहानी मरकज (आध्यात्मिक केंद्र) है। मैं यहां ऐतिहासिक बंधनों को पुनर्स्थापित और मजबूत करने आया हूं।
मुत्तकी ने दारुल उलूम की तारीफ करते हुए इसे तालिबान नेतृत्व से गहराई से जुड़ा हुआ बताया। उन्होंने कहा कि यह संस्थान, जो 19वीं सदी के अंत में स्थापित हुआ, ने न केवल भारत बल्कि विश्व भर के इस्लामी विद्वानों को जन्म दिया है, और अफगानिस्तान के साथ इसके रिश्ते सदियों पुराने हैं। इस दौरान उन्होंने दारुल उलूम के वरिष्ठ उलेमा, जिनमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी भी शामिल थे, से अलग से मुलाकात की।
देवबंद में पहुंचने के बाद एएनआई से विशेष बातचीत में मुत्तकी ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर उत्साह जताया। उन्होंने कहा, “यात्रा अब तक बहुत अच्छी रही है। न केवल दारुल उलूम के लोग, बल्कि पूरे इलाके के लोग यहां आए हैं। मैं उनके गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए आभारी हूं… देवबंद के उलेमा और इलाके के लोगों को इस गर्मजोशी के लिए धन्यवाद… भारत-अफगानिस्तान संबंधों का भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखाई देता है।
उनके ये बयान भारत और अफगानिस्तान के बीच आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक संकेत हैं। मुत्तकी ने जोर देकर कहा कि तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान क्षेत्रीय स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है, और भारत जैसे मित्र देशों के साथ व्यापार व निवेश के नए अवसर तलाशे जा रहे हैं। उन्होंने चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापारिक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता पर भी बल दिया, जहां अमेरिकी प्रतिबंध एक प्रमुख चुनौती हैं।
बताते चलें कि मुत्तकी का भारत दौरा 10 अक्टूबर को दिल्ली पहुंचने के साथ शुरू हुआ, जहां उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से द्विपक्षीय वार्ता की। दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, “पिछले चार वर्षों में इस्लामी अमीरात ने साबित कर दिया है कि अफगानिस्तान की धरती का किसी अन्य देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होगा। उन्होंने पाकिस्तान से संचालित लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूहों को अफगानिस्तान से खदेड़ने का दावा किया और भारत के साथ “भाईचारे वाले संबंध” बहाल करने की इच्छा जताई।
देवबंद दौरा मुत्तकी के भारत यात्रा का दूसरा चरण था, जिसमें वे ताजमहल का भी दौरा करने वाले थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह यात्रा तालिबान के वैश्विक अलगाव को कम करने और भारत जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ी के साथ संबंध सुधारने की रणनीति का हिस्सा है। भारत ने अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं में अरबों डॉलर निवेश किए हैं, और मुत्तकी के दौरे से इन परियोजनाओं को नई गति मिल सकती है।
मुत्तकी के बयानों से पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के तनावपूर्ण संबंध भी उभरकर सामने आए। उन्होंने वाघा सीमा के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने की वकालत की, लेकिन साथ ही पाकिस्तान द्वारा काबुल में कथित हवाई हमलों पर अस्पष्ट प्रतिक्रिया दी। भारत के लिए यह दौरा एक अवसर है, जहां अफगानिस्तान को चाबहार जैसे मार्गों से जोड़कर पाकिस्तान पर निर्भरता कम की जा सकती है।

